BOLLYWOOD AAJKAL

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Saturday, May 21, 2016

ये रजनी का स्टाइल है........


बॉलीवुड में हर अभिनेता किसी न किसी पूर्ववर्ती अभिनेता के स्टाइल  को अपनाता ही है। अमिताभ बच्चन से लेकर रणवीर कपूर तक के अभिनय में पुराने कलाकारों की कॉपी देखी जा सकती है। लेकिन रजनीकांत एकमात्र ऐसे एक्टर हैं जिनकी अपनी एक खास शैली है जो खुद उनके द्वारा ही विकसित की गयी है और मजे की बात ये है कि उनके स्टाइल की कॉपी असंभव है.उनके चलने की अदा हो या फिर होठों को चबा-चबा कर संवाद बोलने का अंदाज़ हो या फिर सिगरेट को हवा में उछलकर पिस्तौल से सुलगाने का स्टाइल -ये सब रजनीकांत को स्टाइल को सबसे अलहदा बनाती है। रजनीकांत का निजी व्यक्तित्व और स्टाइल दोनों ही लार्जर दैन लाइफ बन चुके हैं और हीरो की इससे बेहतर परिभाषा और क्या हो सकती है.
12 दिसंबर, 1950 को बेंगलुरू में जन्मे  शिवाजी राव गायकवाड़ उर्फ़ रजनीकांत की कामयाबी का सफर काफी मुश्किलों भरा रहा  है।एक मामूली से बस कंडक्टर से शुरू हुआ उनका जिंदगी का सफर उत्तर-चढाव से भरपूर रहा।  रजनीकांत की मुलाकात एक नाटक के मंचन के दौरान फिल्म निर्देशक के. बालाचंदर से हुई थी, जिन्होंने उनके समक्ष उनकी तमिल फिल्म में अभिनय करने का प्रस्ताव रखा। इस तरह उनके करियर की शुरुआत बालाचंदर निर्देशित तमिल फिल्म 'अपूर्वा रागंगाल' (1975) से हुई, जिसमें वह खलनायक बने। यह भूमिका यूं तो छोटी थी, लेकिन इसने उन्हें आगे और भूमिकाएं दिलाने में मदद की। इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया था।करियर की शुरुआत में तमिल फिल्मों में खलनायक की भूमिकाएं निभाने के बाद वह धीरे-धीरे एक स्थापित अभिनेता की तरह उभरे। तेलुगू फिल्म 'छिलाकाम्मा चेप्पिनडी' में उन्हें हीरो बनने का मौक़ा मिला  उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। कुछ वर्षो में ही रजनीकांत तमिल सिनेमा के कामयाब  सितारे बन गए.1982 तक रजनीकांत तमिल फिल्मों के सुपर स्टार बन चुके थे और उनकी कामयाबी  बॉलीवुड में भी दस्तक देने लगी थी। 1983 में निर्देशक टी रामाराव उन्हें फिल्म "अँधा क़ानून " के जरिये हिंदी फिल्मों में लेकर आये। इस फिल्म में उनके साथ अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी की जोड़ी भी मौजूद थी। अमिताभ बच्चन उस समय के सुपर स्टार थे और उनके सामने हर कलाकार  फ़िल्मी परदे पर बौना नज़र आने लगता था लेकिन अपनी छोटी सी भूमिका  रजनीकांत ने बिग बी अपने होने का एहसास करवा दिया। हीरोगिरी अमिताभ के हिस्से आयी और तालियां रजनी बटोर ले गए। फिल्म में  बिग बी साथ रजनी की जोड़ी को पसंद किया गया और आगे निर्देशकों ने इस जोड़ी को गिरफ्तार ,हम जैसी फिल्मों में सफलता के साथ आजमाया। लेकिन जल्द ही रजनी बॉलीवुड की भेड़चाल का शिकार हो गया और मेरी अदालत,जॉन जॉनी जनार्दन ,क़ानून का क़र्ज़ ,फूल बने अंगारे,भगवान दादा ,इन्साफ कौन करेगा और खून का क़र्ज़  जैसी फिल्मों में खुद को दोहराते नज़र आये। हिंदी फिल्मों में रजनीकांत की कामयाबी उनकी अलग शैली के कारण थी जो बॉलीवुड के प्रचलित ढर्रे से बिलकुल अलग थी जो दर्शकों को रोमांचित करने के साथ साथ एंटरटेन भी करती थी। दोहराव के बावजूद दर्शक तो राजनीमार्का स्टाइल  नहीं ऊबे लेकिन खुद रजनीकांत को ये एकरसता रास नहीं आयी और उन्होने हिंदी फिल्मों को अलविदा कह फिर से साउथ का रुख कर  लिया। 
                 तमिल फिल्मों ने अपने इस हीरो की वापसी का इस्तकबाल इतनी गर्मजोशी से किया की खुद रजनीकांत  भी हैरान हो गए। 2002 में फिल्म बाबा से तमिल फिल्मों में रजनीकांत की ग्रैंड वापसी हुई। इससे बाद रजनीकांत ने शिवाजी,बॉस शंकर जैसी एक से एक कामयाब फिल्मों की झड़ी लगा दी। रजनीकांत के प्रति दर्शकों की दीवानगी का आलम ये है कि उनकी फ़िल्में रिलीज होने से पहले ही सुपर हिट हो जाती है। दर्शक रात से ही टिकट के लिए लाइन में खड़े हो जाते हैं। लोग उनकी पूजा करते हैं। उनकी फिल्मों में पोस्टर का दुग्धभिषेक करते हैं। ये कामयाबी शायद ही किसी और को नसीब हुई हो। उनकी कामयाबी ने उन्हें रजनीकांत से रजनी सर बना दिया। लोग उनका नाम भी अदब से लेते हैं। रजनी सर की इस कामयाबी में उनकी फिल्मों में  साथ उनके निजी व्यवहार का भी हाथ है। उनकी छवि  शांत,मितभाषी और शोहरत से बेपरवाह शख्स की है। नेचुरल होने के बावजूद ये भी उनकी एक अदा है जिसके करोड़ो लोगों के साथ खुद देश के प्रधानमंत्री भी मुरीद हैं।  

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