BOLLYWOOD AAJKAL

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OLD& BOLD BOLLYWOOD

Friday, November 9, 2012

इल्मी नहीं फ़िल्मी है ..

इल्मी नहीं फ़िल्मी है ..
जो दिखेगा वही  बिकेगा .....खबर से लेकर एंकर तक मीडिया में यही फार्मूला हिट है.. .गरीबी ,भुखमरी भी बिक सकती हैं,बशर्ते आप पैकेजिंग  कर सकें .. ,लेकिन ये काबिलियत हर किसी में नहीं होती .हर कोई कमाल खान नहीं होता ,जो चुने हुए सर्द शब्दों और उसे बोलने के जर्द अंदाज़ से तस्वीरो में अहसास भर दे..हर कोई रवीश कुमार भी नहीं होता जिनकी  आँखें  खबरों की गहराई में उतर   कर देखनेवालो को झकझोर दे ..खबरे विजुअल से ही असरदार बन सकती हैं ..अब ये ये धारणा टूटनी ही चाहिए .....क्राईम ,क्रिकेट  और सिनेमा की बिकाऊ तिकड़ी में फ़िलहाल सिने पत्रकारिता ऐसी चीज है,जो वाकई अपने होने से वितृष्णा पैदा कर रही हैं ..सिनेमा से जुडी जो खबरे नफीस अंदाज़ में पेश की जाती हैं,वो तस्वीर का एक अलग पहलू  है,लेकिन इस पहलू  में काफी  आपा-धापी मची हुई है  ...

                                                                            डेस्क से चिपके महारथी  शायद आज की हकीकत से रु-ब -रु नहीं होंगे क्यूंकि उन्होंने ऐसे समय में करियर  शुरू किया था ...जब वो सिनेमावालो के लिए किसी देवदूत से कम नहीं होते थे ..बाकायदा पाहून की तरह उनका स्वागत किया जाता था ..उन्हें फ़ील्ड में बड़े ऊँचे दर्जे के प्राणी माना  जाता था ..कई तो ऐसे थे कि उनकी बातों से ही  इंडस्ट्रीवालों  का दिल भारी होने लगता था.. विक्रम सिंह से खालिद मोहम्मद  तक  ये परपरा अपनी आन के साथ चलती  रही..शायद इसकी वजह  ये भी रही हो कि इन्हें  बाय्सकलथीवस  या फेनिली या फिर समानांतर  सिनेमा जैसे शब्दों के मायने देखने के लिए शब्दकोष कि जरूरत नहीं पड़ती हो ,लेकिन आज के  फिल्मी पत्रकारों के सामने इन शब्दों को खड़ा कर दो तो बेचारा  गश  खाकर गिर पड़ेंगा ..कई तो ऐसे गिरे कि बीट ही बदल दिया ..बीट बदली  जा सकती है..क्यूंकि इस बीट में हर कोई  फीटहोने लायक नहीं होता  ,फिर भी हैं  क्यूंकि उन्हें कहीं -न -कहीं होना है .. इसलिए इसी में   घुसा दिए गये ..अब भला इसमें उनका क्या दोष ? वाकई दोष उनका नहीं .दोष तो उनका भी नहीं हैं ..जिन्होंने उन्हें सिनेमाई  पत्रकारिता का  परचम थमाया है .क्या करें .. बाज़ार अब यही चाहता है ..,बाज़ार ,विचार से नहीं चलता ..
                                                                             बहरहाल टी .आर .पी.
चाहिए तो फ़िल्मी ख़बरें भी चलानी ही होंगी..स्टार न्यूज़ ने इन ख़बरों को खबर फ़िल्मी है  बना कर थोड़ी ईमानदारी जरूर बरती..खबर फ़िल्मी है यानी इसे फ़िल्मी मिजाज़ के साथ ही देखो और समझो..यानी ये खबर फिल्म की नहीं बल्कि फिल्माई है ..ड्रामा  है बिलकुल फिल्म की तरह है ...उन्होने इमानदारी से बता दिया कि ये खबर की माँ- बहन है ..देखना है तो देखो  या फिर अपना सर धुनो...ऐसी ही ईमानदारी लाइव इंडिया भी दिखाता रहा ..उनका woll था फिल्लम - विल्लम और क्या ..?यानी ये खबर इल्मी नहीं फ़िल्मी है ..इन्हें सीरयसली मत लो ..फिर भी दर्शक है कि मानता नहीं .....ये मजाक की खबर है ख़बरों का मजाक ...?

                                                                        आप यहाँ आये किसलिए..?ये एक ऐसा सवाल है जिसका सामना जहाँ-तहां बिन बुलाये मेहमान की तरह घुस  आने वाले पत्रकारों को अक्सर करना पड़ता है ..कुकुरमुत्ते की तरह उगते चैनलों ने खबरनवीसों को इतना सता बना दिया कि कई बार तो ये बुलाये ही जाते हैं धकियाने के लिए ..कई बार तो बाकायदा जूते खाने की नौबत भी आ जाती है ..फिर भी सब्र की इन्तेहाँ तो देखिये जुतियाआ हुआ आदमी ऐसे बाहर निकलता है जैसे अभी अभी ओबामा के साथ डिनर करके निकला हो ...खैर ये लानत मलामत उन्हें उससे तो बेहतर ही लगती है जो इन ख़बरों को न लाने के कारण न्यूज़ रूम में भुगतनी पड़ती..बहरहाल ..फ़िल्मी पत्रकारों को इस गाने के मुखड़े को बार बार जीना पड़ता है ..किसी इवेंट में दरवाजे पर दरबान की तरह खड़ा  पी आर . भेदती नज़रों से ऐसे घूरेगा कि आदमी को अपने होने पर भी शर्म आने लगे ....ऐसी स्थिति में बदहवास सा नज़र आने लगते हैं ये खबरनवीस ..कभी इन्हीं पत्रकारों की खुशामद में जुटे ये मीडिया मैनेजर आज इनके भाग्यविधाता हैं ....यही तय करेंगे पूछे जाने वाले सवाल ..यही तय करेंगे जवाब ...पत्रकारों का काम होगा बूम का भार उठा कर आना और जाना ...वो तो यही सोचकर धन्य हो गया कि आखिर हम बुलाये तो गए .....फालतू की प्रेस कांफ्रेंस में भी बड़े मुश्तैद होते हैं मीडिया मैनेजर ..इस मुश्तैदी के बावजूद कई पत्रकार फ़िल्मी हो  ही जाते हैं ....किसी इवेंट्स पर ये पत्रकार सेलीब्रेटी पर ऐसे टूटते हैं जैसे कोई शिकारी अपने शिकार पर ..आज के खबरनवीस हैं जो अपनी मासूम सी शक्ल के बावजूद नफीस नहीं हैं..ये ख़बरों पर झपटते हैं..बिल्कुल गिद्ध के अंदाज़ में..क्या बात चाँद पल में ही क्या हो जाए..ये सितारों के कपड़ों से लेकर नेलपालिश तक छानबीन करते हैं ..बूम ऐसे पकड़ते हैं जैसे मुहं में ही ठूंस देंगे ...कई बार तो ये सितारों के सीने पर ही चढ़ बैठते हैं ....ऐसी गर्मी.. ऐसा तनाव मोर्चे पर भी क्या होता होगा..कई बार अपनी नाक और कैमरा तुडवा लेने के बावजूद ये अपने स्टाइल से तस से मस होने को तैयार नहीं ..ये फ़िल्मी पत्रकार हैं ..बूमबाजी की इस रेस के पीछे का दबाव क्या है ये तो इन्हें रेस का घोडा बनानेवाले ही जानें ..मीडिया में मची टी आर पी की होड़ को देखते हुए ऐसा तो लगता नहीं कि ये हालात जल्दी बदलेंगे ..

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