
भले ही आज हालात काफी बदले हुए हैं लेकिन टीवी के सितारों को बड़े पर्दे पर अपनी स्वीकृति बनाने में लम्बे संघर्ष गुजरना पड़ा है। शाहरुख़ खान ने टीवी से गुजरते हुए बॉलीवुड में अपना मुकम्मल स्थान बनाया। लेकिन बाद में जिसने भी ये राह पकड़ी उन्हें असफलता का सामना करना पड़ा। दूरदर्शन के सीरियल शान्ति से मंदिरा बेदी घर घर में पहचानी जाने लगी। लेकिन जब उहोने ‘दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ से बड़े परदे की राह पकड़ी तो टीवी से भी उखड गयी। निजी चैनलों की शुरुआत के बाद ‘तारा’ सीरियल से नवनीत निशान को जो धमाकेदार लोकप्रियता मिली, उसके बल पर फिल्मों में उन्हें प्रवेश तो मिल गया लेकिन ‘राजा हिंदुस्तानी’ व ‘तुम बिन’ की थोड़ी मजबूत भूमिका के अलावा डेढ़ दर्जन फिल्मों ने उनकी ऐसी छवि नहीं बनाई जो सहायक भूमिकाओं में ही सही, अग्रिम कतार में उन्हें खड़ा कर पाती।एकता कपूर के सीरियल ‘कसौटी जिंदगी की’ के मिस्टर बजाज और ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ में मिहिर के रूप में बनी उनकी पहचान फिर भी फिल्मों का रास्ता आसान नहीं कर पाई। ‘उड़ान’ से उन्हें वाहवाही तो मिली लेकिन गुजारा टीवी के सहारे ही चल रहा है।
एकता कपूर ने जब फिल्म निर्माण का सिलसिला शुरू किया तो अपने सीरियलों की अनिता हंसदानी व प्राची देसाई को मौका दिया। अनिता तो तीन-चार फिल्मों के बाद माडलिंग में सिमट गईं और अब फिर सीरियल की तरफ मुड़ गई हैं। प्राची देसाई को ‘बोल बच्चन’ व ‘पुलिसगिरी’ में देखने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि सीरियल ‘कसम से’ जैसी ऊंचाई उनका फिल्मी करिअर नहीं पा सकेगा।‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ के मिहिर वीरानी बने अमर उपाध्याय की लोकप्रियता का यह आलम था कि सीरियल में एक बार उन्हें मार देने के बाद दर्शकों की मांग पर उन्हें पुनर्जीवित किया गया। सीरियल बीच में ही छोड़ कर वे फिल्मी दुनिया में दाखिल होने के लिए कूद पड़े। अति उत्साह में उन्होंने गलत फिल्में चुन ली और यह भ्रम पाल लिया कि वे अपने बल पर किसी भी फिल्म को चला सकते है।
पहली फिल्म के पिटते ही उनकी गलतफहमी तो मिट गई, आगे बढ़ने के रास्ते भी बंद हो गए।अमन वर्मा सालों पहले फिल्म ‘संघर्ष’ में प्रीति जिंटा के हीरो बन कर जरूर गए लेकिन उसके बाद उनका फिल्मी ग्राफ लुढ़कता ही चला गया.यही हाल आमना शरीफ का भी हुआ।
इन दिनों सुशांत सिंह ,आयुष्मान खुराना और प्राची देसाई जैसे कलाकारों को बॉलीवुड में स्टार का दर्जा हासिल है। फ़िल्मी पंडितों के मुताबिक़ अब टीवी और फिल्मों विभाजक रेखा समाप्त हो चुकी है।छोटे परदे पर बड़े परदे की सितारों की लगातार मौजूदगी ने भी इस दूरी को मिटाने का काम किया। अब दर्शक अपने पसंदीदा सितारों को हर अवतार में स्वीकार करने को तैयार है। इस स्थिति ने टीवी के सितारों के लिए एक नयी उम्मीद जग दी है।
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