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Monday, December 3, 2012

हर फिक्र को धुएं में उड़ाते चला गए देव साहब

हर फिक्र को धुएं में उड़ाते  चला गए देव साहब 
हिन्दी फिल्मों के जाने-माने सदाबहार अभिनेता देवदत्त पिशोरीमल आनंद उर्फ देव आनंद ने अपने रूमानी अंदाज से सिने प्रेमियो के दिलो पर राज किया। देव आनंद का जन्म पंजाब के गुरदासपुर के एक गांव में 26 सिंतबर 1923 को एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। बचपन से ही उनका झुकाव अपने पिता के पेशे वकालत की ओरन होकर अभिनय की ओर था। उन्होने अंग्रेजी साहित्य में अपनी स्नातक की शिक्षा 1942 में लाहौर के मशहूर गवर्नमेट कॉलेज से पूरी की। इस कॉलेज ने फिल्म और साहित्य जगत को बलराज साहनी, चेतन आनंद, बी.आर.चोपड़ा और खुशवंत सिंह जैसे शख्सियतें दी है। देव आनंद को अपनी पहली नौकरी मिलिट्री सेन्सर ऑफिस में एक लिपिक के तौर पर मिली जहां उन्हें सैनिकों द्वारा लिखी चिट्ठियों को उनके परिवार के लोगों को पढ़ कर सुनाना पड़ता था। इस काम के लिए देव आनंद को 165 रूपये मासिक वेतन के रूप में मिला करता था जिसमें से 45 रूपये वह अपने परिवार के खर्च के लिए भेज दिया करते थे लगभग एक वर्ष तक मिलिट्री सेन्सर में नौकरी करने के बाद वह अपने बड़े भाई चेतन आनंद के पास मुंबई आ गए। चेतन आनंद उस समय भारतीय जन नाटय संघ इप्टा से जुड़े हुए थे। उन्होंने देव आनंद को भी अपने साथ इप्टा में शामिल कर लिया। 

वर्ष 1946 में बतौर अभिनेता देव आनंद ने फिल्म हम एक है से अपने सिने कैरियर की शुरूआत की लेकिन इस फिल्म के असफल होने से वह दर्शकों के बीच अपनी पहचान नहीं बना सके। इस फिल्म के निर्माण के दौरान प्रभात स्टूडियो मे उनकी मुलाकात गुरूदत्त से हुई जो उस समय फिल्मों में कोरियोग्राफर के रूप मे अपनी पहचान बनाना चाह रहे थे। वर्ष 1948 में प्रदर्शित फिल्म जिद्दी देव आनंद के फिल्मी कैरियर की पहली हिट फिल्म साबित हुई। इस फिल्म की कामयाबी के बाद उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रख दिया और नवकेतन बैनर की स्थापना की। नवकेतन के बैनर तले उन्होंने वर्ष 1950 में अपनी पहली फिल्म अफसर का निर्माण किया जिसके निर्देशन की जिम्मेवारी उन्होंने अपने बड़े भाई चेतन आनंद को सौपी। इस फिल्म के लिए उन्होंने उस जमाने की जानी मानी अभिनेत्री सुरैया का चयन किया जबकि अभिनेता के रूप में देव आनंद खुद ही थे यह फिल्म चली नही। इसके बाद उनका ध्यान गुरूदत्त को किए गए वायदे की तरफ गया। उन्होंने अपनी अगली फिल्म बाजी के निर्देशन की जिम्मेदारी गुरूदत्त को सौप दी। बाजी फिल्म की सफलता के बाद देव आनंद फिल्म इंडस्ट्री में एक अच्छे अभिनेता के रूप में शुमार होने लगे। इस बीच देव आनंद ने मुनीमजी, दुश्मन, कालाबाजार, सी.आई.डी, पेइंग गेस्ट, गैम्बलर, तेरे घर के सामने, काला पानी जैसी कई सफल फिल्र्मो में अपनी अदाकारी का जौहर प्रस्तुत किया। 
 इसके बाद देव आनंद ने गुरूदत्त के निर्देशन में वर्ष 1952 में फिल्म जाल में भी अभिनय किया। इसफिल्म के निर्देशन के बाद गुरूदत्त ने यह फैसला किया कि वह केवल अपनी निर्मित फिल्मों का निर्देशन करेंगे। बाद में देव आनंद ने अपनी निर्मित फिल्मों के निर्देशन की जिम्मेदारी अपने छोटे भाई विजय आनंद को सौंप दी। विजय आनंद ने देव आनंद की कई फिल्र्मो का निर्देशन किया। इन फिल्मो में कालाबाजार, तेरे घर के सामने, गाइड, तेरे मेरे सपने, छुपा रूस्तम प्रमुख है। फिल्म अफसर के निर्माण के दौरान देव आनंद का झुकाव फिल्म अभिनेत्री सुरैया की ओर हो गया था। 

एक गाने की शूटिंग के दौरान देव आनंद और सुरैया की नाव पानी में पलट गई जिसमे उन्होने सुरैया को डूबने से बचाया। इसके बाद सुरैया देव आनंद से बेइंतहा मोहब्बत करने लगी लेकिन सुरैया की दादी की इजाजत न मिलने पर यह जोड़ी परवान नही चढ़ सकी। वर्ष 1954 में देव आनंद ने उस जमाने की मशहूर अभिनेत्री कल्पना कार्तिक से शादी कर ली। 
 देव आनंद प्रख्यात उपन्यासकार आर.के.नारायण से काफी प्रभावित रहा करते थे और उनके उपन्यास गाइड पर फिल्म बनाना चाहते थे। आर.के.नारायणन की स्वीकृति के बाद देव आनंद ने हॉलीवुड के सहयोग से हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में फिल्म गाइड का निर्माण किया जो देव आनंद के सिने कैरियर की पहली रंगीन फिल्म थी। इस फिल्म के लिए देव आनंद को उनके जबर्दस्त अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार भी दिया गया। वर्ष 1970 में फिल्म प्रेम पुजारी के साथ देव आनंद ने निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रख दिया। हालांकि यह फिल्म बॉ1स ऑफिस पर बुरी तरह से नकार दी गई बावजूद इसके उन्होंने हिम्मत नही हारी। इसके बाद वर्ष 1971 में फिल्म हरे रामा हरे कृष्णा का भी निर्देशन किया जिसकी कामयाबी के बाद उन्होंने अपनी कई फिल्र्मो का निर्देशन भी किया। इन फिल्मों में हीरा पन्ना, देश परदेस, लूटमार, स्वामी दादा, सच्चे का बोलबाला, अव्वल नंबर जैसी फिल्में शामिल है।
देव आनंद ने कई फिल्मों की पटकथा भी लिखी। जिसमें वर्ष 1952 मे प्रदर्शित फिल्म आंधियां के अलावा हरे रामा हरे कृष्णा, हम नौजवान, अव्वल नंबर प्यार का तराना, गैंगस्टर, मैं सोलह बरस की, सेन्सर आदि फिल्में शामिल है।
देव आनंद को अपने अभिनय के लिए दो बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। देव आनंद को सबसे पहला फिल्म फेयर पुरस्कार वर्ष 1950 में प्रदर्शित फिल्म कालापानी के लिए दिया गया। इसके बाद वर्ष 1965 में भी देव आनंद फिल्म गाइड के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए। वर्ष 2001 में देव आनंद को भारत सरकार की ओर से पद्मभूषण सम्मान प्राप्त हुआ। वर्ष 2002 में उनके द्वारा हिन्दी सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अपने जीवन के 80 से भी ज्यादा वसंत देख चुके देव आनंद अब हमारे बीच नही हैं लेकिन सिनेप्रेमियों के दिलो में वह हमेशा जिंदा रहेंगे।
जीवन की अंतिम सांस तक अपनी फिल्मी परियोजनाओं के साथ सक्त्रिय रहे देव आनंद बॉलीवुड के वास्तविक पीटर पैन (सदाबहार) थे। उन्होंने अपने गीत मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया के दर्शन को सचमुच अपने जीवन में उतारा।
सदाबहार फिल्म अभिनेता देव आनंद ने हिंदी फिल्म जगत में 1951 की बाजी से लेकर 2011 की चार्जशीट तक छह दशकों का लम्बा सफर तय किया। उम्र को पीछे छोड़ देने वाले देव आनंद ने हिंदी सिनेमा को श्वेत-श्याम युग से तकनीकी रंगीन युग में परिवर्तित होते देखा, और अपने पीछे एक ऐसी अनोखी विरासत छोड़ी जो सिनेमाई कार्यो से कही आगे निकल चुकी है।
देव आनंद ने अपनी हालिया रिलीज फिल्म चार्जशीट तक अभिनय, निर्देशन, निर्माण सब कुछ किया और उस समय वह 88 के हो चुके थे और हमेशा की तरह सक्त्रिय थे। देव आनंद ने सौम्य, सज्जन व्यक्ति के चरित्र को परदे पर चरितार्थ किया, और नलिनी जयवंत से लेकर जीनत अमान तक, कई पीढ़ी की अभिनेत्रियों के साथ रोमांटिक भूमिका निभाई।
देव आनंद ने मुनीमजी, सीआईडी और हम दोनों जैसी फिल्मों के जरिए श्वेत-श्याम युग पर राज किया और उसके बाद ज्यूल थीफ और जॉनी मेरा नाम जैसी क्लासिक फिल्मों के साथ रंगीन युग में प्रवेश किया। उन्होंने जीनत और टीना मुनीम जैसी कई मशहूर अभिनेत्रियों के करियर को शुरुआती आधार मुहैया कराया। देव आनंद ने 110 से अधिक फिल्मों में नायक की भूमिका निभाई।
2011 में आई उनकी फिल्म चार्जशीट उनकी अंतिम फिल्म साबित हुई। इस फिल्म को उन्होंने निर्देशित किया था और इसमें अभिनय भी किया था। देव आनंद की आत्मकथा रोमांसिंग विद लाइफ सितम्बर 2007 में जारी हुई थी। अन्य लोगों की तरह देव आनंद ने भी सफलता से पहले काफी संघर्ष किया। उन्होंने 160 रुपये के वेतन पर चर्चगेट में एक सैन्य सेंसर कार्यालय में काम किया।
भाग्य ने साथ दिया और जल्द ही उन्हें प्रभात टाकीज की तरफ से हम एक हैं (1946) में एक अभिनेता के रूप में काम करने का प्रस्ताव मिला। पुणे में फिल्म की शूटिंग के दौरान देव आनंद की मुलाकात गुरु दत्त से हुई, और वहीं दोनों की मित्रता हो गई। देव आनंद के करियर में दो वर्षो बाद महत्वपूर्ण मोड़ तब आया, जब अशोक कुमार ने बाम्बे टाकीज की हिट फिल्म जिद्दी (1948) में काम करने का बड़ा मौका दिया। इस फिल्म के बाद अशोक कुमार देव आनंद को लगातार फिल्मों में हीरो बनाते रहे।
देव आनंद ने 1949 में खुद की निर्माण कम्पनी, नवकेतन की शुरुआत की। पूर्व के वादे के मुताबिक उन्होंने अपने बैनर की पहली फिल्म बाजी (1951) के निर्देशन के लिए गुरु दत्त से कहा। इस फिल्म ने देव आनंद को रातों रात स्टार बना दिया, और वह जीवन के अंतिम सांस तक, छह दशकों बाद भी स्टार बने रहे।
देव आनंद ने एक अन्य नायिका कल्पना कार्तिक से शादी की। देव आनंद को हिंदी सिनेमा में योगदान के लिए दादा साहेब फाल्के पुरस्कार और पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। जीवन के प्रति उनकी दिलचस्पी हमेशा याद की जाएगी। उनकेपरिवार में पत्नी, एक पुत्र और एक पुत्री है।

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