बॉबी नहीं, तो बीवी ही सही..
फिल्मों में बाल कलाकार की भूमिका निभानेवाली बेबी नीतू जब जवां होकर नीतू सिंह बनी, तो फिल्मों में हीरोइन बनने के लिए स्टूडियो दर स्टूडियो चक्कर काटने का दौर शुरू हो गया... उन्हीं दिनों राजकपूर अपने बेटे ऋषि कपूर को लेकर "बॉबी" के निर्माण की योजना बना रहे थे, जिसके लिए उन्हें नयी हीरोइन की तलाश थी...
नीतू सिंह की तलाश उसे आर. के. स्टूडियो खींच लायी और वह पहली नज़र में राजकपूर को भा गई... कुछ दिनों बाद उसे स्क्रीन टेस्ट के लिए बुलाया गया... जिसमे वो सफल रही और इस प्रकार उसे "बॉबी" की भूमिका के लिए साइन कर लिया गया...
अब इसे नीतू का दुर्भाग्य कहें या डिम्पल कपाड़िया का सौभाग्य कि बाद में राजकपूर ने नीतू सिंह को हटाकर डिम्पल को बॉबी के लिए साइन कर लिया... उनका तर्क था कि 'बॉबी' जो एक क्रिश्चयन लड़की है, के किरदार में नीतू जम नहीं पा रही है, जबकि डिम्पल इसके लिए एकदम उपयुक्त है... इस प्रकार बॉबी में ऋषि कपूर की हीरोइन बनने से वंचित रही नीतू सिंह को फिल्म "रिक्शावाला" में रणधीर कपूर की हीरोइन बनकर ही संतोष करना पड़ा...
फिल्मों में बाल कलाकार की भूमिका निभानेवाली बेबी नीतू जब जवां होकर नीतू सिंह बनी, तो फिल्मों में हीरोइन बनने के लिए स्टूडियो दर स्टूडियो चक्कर काटने का दौर शुरू हो गया... उन्हीं दिनों राजकपूर अपने बेटे ऋषि कपूर को लेकर "बॉबी" के निर्माण की योजना बना रहे थे, जिसके लिए उन्हें नयी हीरोइन की तलाश थी...
नीतू सिंह की तलाश उसे आर. के. स्टूडियो खींच लायी और वह पहली नज़र में राजकपूर को भा गई... कुछ दिनों बाद उसे स्क्रीन टेस्ट के लिए बुलाया गया... जिसमे वो सफल रही और इस प्रकार उसे "बॉबी" की भूमिका के लिए साइन कर लिया गया...
अब इसे नीतू का दुर्भाग्य कहें या डिम्पल कपाड़िया का सौभाग्य कि बाद में राजकपूर ने नीतू सिंह को हटाकर डिम्पल को बॉबी के लिए साइन कर लिया... उनका तर्क था कि 'बॉबी' जो एक क्रिश्चयन लड़की है, के किरदार में नीतू जम नहीं पा रही है, जबकि डिम्पल इसके लिए एकदम उपयुक्त है... इस प्रकार बॉबी में ऋषि कपूर की हीरोइन बनने से वंचित रही नीतू सिंह को फिल्म "रिक्शावाला" में रणधीर कपूर की हीरोइन बनकर ही संतोष करना पड़ा...
इसके बाद नीतू सिंह को फिल्म "जहरीला इंसान" में
ऋषि कपूर की हीरोइन बनने का मौक़ा मिला... फिल्म निर्माण के दौरान ऋषि कपूर
और नीतू सिंह एक-दूसरे के काफी करीब आ गए और यही नजदीकियां प्यार में
तब्दील हो गईं.. ऋषि कपूर के साथ प्रेम कहानी की शुरुआत होते ही नीतू सिंह
के करियर में अचानक उछाल आया... यह जोड़ी फिल्मकारों की पहली पसंद बन गयी...
रवि टंडन की "खेल-खेल में", मनमोहन देसाई की "अमर-अकबर-एंथोनी" तथा यश
चोपड़ा की " कभी-कभी" में इस जोड़ी को खूब पसंद किया गया.
.. इसके अलावा भी इस
जोड़ी ने कई फ़िल्में साथ-साथ कीं... जब ऋषि - नीतू की जोड़ी लोकप्रियता के
शिखर पर थी तो राजकपूर ने फिर इन्हें लेकर "राम तेरी गंगा मैली" के निर्माण
की योजना बनायीं... लेकिन किसी कारणवश यह योजना आधार में लटक गई और नीतू
एक बार फिर राजकपूर के साथ काम करने से चूक गई... इसके दस साल बाद राजकपूर
ने राजीव कपूर और मंदाकिनी को लेकर "राम तेरी गंगा मैली" का निर्माण किया
जो काफी सफल रही...
जब ऋषि और नीतू अपने कैरियर के सुनहरे दौर में
थे, तभी उन्होंने अचानक शादी करने का फैसला कर लिया... उनके फैसले की भनक
जब कपूर परिवार को लगी तो हड़कंप मच गया... हालांकि; कपूर परिवार के किसी
सदस्य ने कभी खुलकर इस बारे में कुछ नही कहा लेकिन कहा जाता है कि ऋषि के
इस फैसले से राजकपूर काफी खफा थे... अंतत: नीतू सिंह, ऋषि कपूर से शादी कर
नीतू कपूर बन गई और हमेशा के लिए फ़िल्मी दुनिया से अलविदा कह दिया.
.. अपने
प्यार के लिए नीतू ने अपने कैरियर की बलि चढ़ा दी.. आज भी ये दोनों सफल
पाती-पत्नी के रूप में अपनी ज़िन्दगी बिता रहे हैं... इस प्रकार जो नीतू
सिंह राजकपूर की फिल्म में ऋषि कपूर की "बॉबी" बनने में असफल रही थी वो
निजी ज़िन्दगी में ऋषि कपूर की बीवी बनने में सफ़र रही...
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