आइटम सॉंग - मोनिका से मुन्नी तक..
एक बार एक फिल्म के डिस्ट्रीब्युशन के सिलसिले में मैं एक डिस्ट्रीब्यूटर से मिला और फिल्म की रिलीज़ को लेकर आ रही परेशानियों का ज़िक्र करते हुए उनसे मदद की गुहार लगायी | सारी बात सुनाने के बाद उन्होंने मुझसे पूछा - फिल्म में आइटम सॉंग कितने हैं..? मैंने कहा ये एक देशभक्ति पर आधारित फिल्म है | इसमें आइटम सॉंग की गुंजाइश नहीं थी | उन्होंने मुझे समझाते हुए कहा -देशभक्ति पर आधारित फिल्म है, इसीलिए ज्यादा नहीं दो आइटम सॉंग की सिचुएशन बनवाईये, वरना ये फिल्म रिलीज़ नहीं हो पाएगी | वाकई उनकी बात सच निकली | ये फिल्म आज भी डब्बे में बंद है | ये जलवा है आइटम सॉंग का |
फिल्मों में आइटम सॉंग का चलन तब भी था, जब निर्माता-निर्देशक चुम्बन और आलिंगन दिखाने के लिए फूलों का इस्तेमाल करते थे | चालीस और पचास के दशक में कुक्कू के कैबरे का जलवा दर्शकों के सर चढ़कर बोलता था | कुक्कू ने इन गानों को कोठे और पार्टियों के दायरे से बाहर निकालकर संभ्रांत महफ़िलों का आनिवार्य अंग बना दिया.. जिसे आगे चलकर हेलन, बिंदु, अरुणा इरानी, पद्मा खन्ना जैसी नृत्यांगनाओं ने ऊँचाई पर पहुंचा दिया..
मोनिका से मुन्नी तक आइटम गानों का जलवा बरकरार है लेकिन इनमें जो एक बड़ा फर्क आया है, वो ये है कि तब फिल्मों में कहानी की सिचुएशन के मुताबिक हुआ करते थे, अब इन गानों के लिए कहानी की सिचुएशन बनाई जाती है | और कभी-कभी जबरन भी ठूंस दिया जाता है | भले इस फिल्म से इसका कोई तालमेल ना बैठे |
८० के दशक तक आइटम सॉंग से नायिकाएं दूर ही रहा करती थी | ये काम सिर्फ आइटम गर्ल्स के जिम्मे ही हुआ करता था | लेकिन 1978 में आई "शालीमार" से जीनत अमान ने आइटम सॉंग के क्षेत्र में एक नए ट्रेंड को जन्म दे दिया | जिसे परवीन बॉबी ने "शान", "नमक हराम" | जीन्नत ने "कुर्बानी" | रेखा ने "जांबाज़" | माधुरी दीक्षित ने "सैलाब", "खलनायक" | उर्मिला ने "चायना टाउन", "लज्जा" | रवीना टंडन ने "रक्षक", "घात", "मोहरा" | शिल्पा शेट्टी ने "शूल" | और सोनाली बेंद्रे ने "बॉम्बे" जैसी फिल्मों से आगे बढ़ाया | आज आलम ये है कि हर हिरोइन आइटम सॉंग करने को बेताब है और हो भी क्यों ना..? इसी सॉंग ने शिल्पा, रवीना, सुष्मिता ,याना गुप्ता,ईशा कोप्पिकर और मल्लिका शेरावत जैसी कई हीरोइनों के डूबते करियर को वापस ट्रैक पर लाने में अहम् रोल अड़ा किया है.हालांकि अब भी मलाइका अरोड़ा ,याना गुप्ता ,राखी सावंत और संभावना सेठ जैसी हसीनाओं ने कुकू और हेलेन की परम्परा को बनाए रखा है.
आइटम सॉंग के बढ़ते चलन पर टिप्पणी करते हुए एक बार मरहूम नौशाद साहब ने कहा था - नब्बे के दशक में फिल्म संगीत के ह्रास को देखते हुए निर्माताओं ने दर्शकों को थियेटरों में कुर्सी से चिपकाए रखने की एक जुगत निकाली जिसने आइटम सॉंग की परम्परा को परवान चढ़ाया .इस दशक में जैसे ही पर्दे पर गाने शुरू होते दर्शकों में लघुशंका की आशंका जोर पकड़ने लगती थी.उनकी इसी आशंका को कम करने के लिए फिल्मों में जबरन आइटम सॉंग की प्रवृति जोर पकड़ने लगी
हिंदी फिल्मों के मुकाबले भोजपुरी फिल्मों की बात करें तो ये अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आज कल भोजपुरी दर्शक केवल इतम सॉंग के कारण ही थियेटरों का रूख करते हैं.भोजपुरी फिल्मों की आइटम क्वीन मानी जानेवाले सीमा सिंह भी इस बात से इत्तेफाक रखते हुए कहती हैं कि जबसे सिंगल थियेटर के फ्लेवर वाली तेजी से आइटम गर्ल के रूप में उभर रही रही पूर्नेला राय चौधरी का इस बारे में कहना है कि फिल्म निर्माण का मकसद इन्तेर्तेंमेंट होता है.अगर कहानी से ज्यादा गाने ही लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं तो इसमें बुरा क्या है..?
आइटम सॉंग पर उठनेवाले अश्लीलता और भोंडेपन के आरोप को नकारती हुए आइटम गर्ल सपना का कहना है कि जब हिंदी फिल्मों में यही सब देखा और दिखाया जाता है तो कोई सवाल नहीं करता फिर भोजपुरी फिल्मों को कठघरे में क्यूँ खड़ा किया जा रहा है ?तमाम तर्क-कुतर्क के बावजूद भोजपुरी के आइटम सोंग्स की हकीकत यही है कि रिमोट से लंहगा उठाने ,चोली में सवा सवा लाख के बम होने और रौशन रातों में चोली के हुक तलाशने की हैरतंगेज़ कल्पना केवल भोजपुरी फिल्मों में ही की जा सकती है .
एक बार एक फिल्म के डिस्ट्रीब्युशन के सिलसिले में मैं एक डिस्ट्रीब्यूटर से मिला और फिल्म की रिलीज़ को लेकर आ रही परेशानियों का ज़िक्र करते हुए उनसे मदद की गुहार लगायी | सारी बात सुनाने के बाद उन्होंने मुझसे पूछा - फिल्म में आइटम सॉंग कितने हैं..? मैंने कहा ये एक देशभक्ति पर आधारित फिल्म है | इसमें आइटम सॉंग की गुंजाइश नहीं थी | उन्होंने मुझे समझाते हुए कहा -देशभक्ति पर आधारित फिल्म है, इसीलिए ज्यादा नहीं दो आइटम सॉंग की सिचुएशन बनवाईये, वरना ये फिल्म रिलीज़ नहीं हो पाएगी | वाकई उनकी बात सच निकली | ये फिल्म आज भी डब्बे में बंद है | ये जलवा है आइटम सॉंग का |
फिल्मों में आइटम सॉंग का चलन तब भी था, जब निर्माता-निर्देशक चुम्बन और आलिंगन दिखाने के लिए फूलों का इस्तेमाल करते थे | चालीस और पचास के दशक में कुक्कू के कैबरे का जलवा दर्शकों के सर चढ़कर बोलता था | कुक्कू ने इन गानों को कोठे और पार्टियों के दायरे से बाहर निकालकर संभ्रांत महफ़िलों का आनिवार्य अंग बना दिया.. जिसे आगे चलकर हेलन, बिंदु, अरुणा इरानी, पद्मा खन्ना जैसी नृत्यांगनाओं ने ऊँचाई पर पहुंचा दिया..
८० के दशक तक आइटम सॉंग से नायिकाएं दूर ही रहा करती थी | ये काम सिर्फ आइटम गर्ल्स के जिम्मे ही हुआ करता था | लेकिन 1978 में आई "शालीमार" से जीनत अमान ने आइटम सॉंग के क्षेत्र में एक नए ट्रेंड को जन्म दे दिया | जिसे परवीन बॉबी ने "शान", "नमक हराम" | जीन्नत ने "कुर्बानी" | रेखा ने "जांबाज़" | माधुरी दीक्षित ने "सैलाब", "खलनायक" | उर्मिला ने "चायना टाउन", "लज्जा" | रवीना टंडन ने "रक्षक", "घात", "मोहरा" | शिल्पा शेट्टी ने "शूल" | और सोनाली बेंद्रे ने "बॉम्बे" जैसी फिल्मों से आगे बढ़ाया | आज आलम ये है कि हर हिरोइन आइटम सॉंग करने को बेताब है और हो भी क्यों ना..? इसी सॉंग ने शिल्पा, रवीना, सुष्मिता ,याना गुप्ता,ईशा कोप्पिकर और मल्लिका शेरावत जैसी कई हीरोइनों के डूबते करियर को वापस ट्रैक पर लाने में अहम् रोल अड़ा किया है.हालांकि अब भी मलाइका अरोड़ा ,याना गुप्ता ,राखी सावंत और संभावना सेठ जैसी हसीनाओं ने कुकू और हेलेन की परम्परा को बनाए रखा है.
आइटम सॉंग के बढ़ते चलन पर टिप्पणी करते हुए एक बार मरहूम नौशाद साहब ने कहा था - नब्बे के दशक में फिल्म संगीत के ह्रास को देखते हुए निर्माताओं ने दर्शकों को थियेटरों में कुर्सी से चिपकाए रखने की एक जुगत निकाली जिसने आइटम सॉंग की परम्परा को परवान चढ़ाया .इस दशक में जैसे ही पर्दे पर गाने शुरू होते दर्शकों में लघुशंका की आशंका जोर पकड़ने लगती थी.उनकी इसी आशंका को कम करने के लिए फिल्मों में जबरन आइटम सॉंग की प्रवृति जोर पकड़ने लगी
हिंदी फिल्मों के मुकाबले भोजपुरी फिल्मों की बात करें तो ये अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आज कल भोजपुरी दर्शक केवल इतम सॉंग के कारण ही थियेटरों का रूख करते हैं.भोजपुरी फिल्मों की आइटम क्वीन मानी जानेवाले सीमा सिंह भी इस बात से इत्तेफाक रखते हुए कहती हैं कि जबसे सिंगल थियेटर के फ्लेवर वाली तेजी से आइटम गर्ल के रूप में उभर रही रही पूर्नेला राय चौधरी का इस बारे में कहना है कि फिल्म निर्माण का मकसद इन्तेर्तेंमेंट होता है.अगर कहानी से ज्यादा गाने ही लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं तो इसमें बुरा क्या है..?
आइटम सॉंग पर उठनेवाले अश्लीलता और भोंडेपन के आरोप को नकारती हुए आइटम गर्ल सपना का कहना है कि जब हिंदी फिल्मों में यही सब देखा और दिखाया जाता है तो कोई सवाल नहीं करता फिर भोजपुरी फिल्मों को कठघरे में क्यूँ खड़ा किया जा रहा है ?तमाम तर्क-कुतर्क के बावजूद भोजपुरी के आइटम सोंग्स की हकीकत यही है कि रिमोट से लंहगा उठाने ,चोली में सवा सवा लाख के बम होने और रौशन रातों में चोली के हुक तलाशने की हैरतंगेज़ कल्पना केवल भोजपुरी फिल्मों में ही की जा सकती है .
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