देख "तमाशा" देख
'तमाशा’ कहानी की ताकत को जताने वाली फिल्म है। कहानियां हमें इस लोक में ले जाती हैं, जो रूटीन से अलग होता है। ये कल्पना की दुनिया है।
निर्देशक इम्तियाज अली, कलाकार- रनबीर कपूर, दीपिका पादुकोण, जावेद शेख, निखिल भगत ‘तमाशा’ के रिलीज होने के पहले इसके निर्देशक इम्तियाज अली ने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘शायद ये फिल्म ‘जब वी मेट’ और ‘रॉकस्टार’ के बीच की फिल्म है। उन्होंने शायद क्यों लगाया था? क्या वे कहना चाहते थे और ये कहने से बच गए थे कि इसमें उनकी ‘लव आजकल’ के भी कुछ तत्व हैं? फिल्म देखने से तो यही लगता है कि इसमें ‘लव आजकल’ के कुछ पहलू चिपके हुए हैं। हो सकता है कि निर्देशक इस बात से अनजान हों। और ये भी हो सकता है कि जानबूझकर वो स्वीकार नहीं करना चाहता हों, लेकिन इससे संभवत: किसी को इनकार नहीं होगा कि इसमें जरा अलग तरह के प्यार का किस्सा है। वही जो छह साल पहले आई इम्तियाज अली की फिल्म ‘लव आजकल’ में दिखा था। उस तरह का प्यार, जिसमें प्रेमी एक-दूसरे को चाहते भी हैं और दुनिया को और खुद को ये जताना चाहते हैं कि प्यार नहीं भी है। गुड़ खाकर गुलगुले से परहेज करने जैसी हालत होती है। वेद (रनबीर कपूर) शिमला का रहने वाला एक नौजवान है और उसकी दिलचस्पी कहानियां सुनने में है। बचपन से वो कहानियां सुनने के लिए पैसे भी चुराता है, लेकिन जैसा कि फिल्मों में भी होता है और हकीकत में भी, वेद पर पिता का दबाव है कि वह इंजीनियर बने। यानी वेद अपनी चाहत के मुताबिक, जिंदगी जी नहीं पाता। वो कॉरपोरेट का हिस्सा बन जाता है और फिर जिंदगी में मोड़ आता है और वेद फ्रांस के कोर्सिका द्वीप पर जाता है और वहां उससे टकराती है तारा (दीपिका पादुकोण)। तारा एक जिंदादिल लड़की है, उससे मिलकर और उसके साथ वक्त गुजारकर वेद को लगता है उसने जिंदगी का सच पा लिया है। यहीं पर फिल्म का निर्देशक प्रवेश करता है और कहानी को ट्विस्ट देता है। वेद औऱ तारा एक दूसरे को चाहते तो हैं, लेकिन दिखावा ये करते हैं कि उनके बीच प्रेम नाम की किसी चिड़िया का अस्तित्व नहीं है। वेद भारत लौट जाता है और तारा भी। तारा औऱ वेद फिर से दिल्ली में मिलते हैं पर तारा ये महसूस करती है कि ये वो वेद नहीं है, जो कोर्सिका में मिला था। वो वेद को झिड़कती है औऱ कहती है कि वो बदल गया है और बोरिंग हो गया है। वह वेद को यह एहसास दिलाती है कि कॉरपोरेट जीवन में मैनेजर की भूमिका में वो अपनी जिंदगी का मकसद भूल गया है। इसके बाद फिल्म उसी पटरी पर वापस लौट आती है, जिस पर बॉलीवुड फिल्मों के निर्देशक चलाते रहे हैं। फिल्म का शानदार हिस्सा वो है जो कोर्सिका में शूट किया गया है। न सिर्फ लोकेशन अच्छी हैं बल्कि कोरियोग्राफी भी गजब की है। यहां वेद और तार आजाद हवा में उड़ते पंछी की तरह मुक्त हैं। उनके भीतर नए किस्म के एहसास उभरते हैं, जो भीतर के वजूद को पर लगा देते हैं। जीवन में नया रस आ जाता है जो वेद औऱ तारा को सराबोर कर देता है। ‘तमाशा’ के गाने भी याद रहने लायक हैं। ‘अगर तुम साथ हो’, ‘मटरगश्ती’, ‘हीर तो बड़ी सैड है’, ‘चली कहानी’ मधुर हैं। और ‘सफरनामा’ बोल वाला गाना तो जिंदगी के फलसफे को बताने वाला है। इसमें एक पक्ति है- ‘जिसे ढूंढा जमाने में मुझी में था’। इम्तियाज अली इसी एक पंक्ति के इर्द गिर्द पूरी फिल्म बुनते हैं। जो आपके भीतर होता है उसी को आप बाहर ढूंढ़ते हैं। वेद का किरदार इसी के इर्द गिर्द है। फिल्म में दीपिका और रनबीर के बीच उसी तरह का लगाव दिखता है जो ‘ये जवानी है दीवानी’ में दिखा था और यह इसका सबसे मजबूत पक्ष है। हालांकि कहानी में दिल्ली वाला जो हिस्सा है वो थोड़ा बोर जरूर करता है और अगर उसे निर्देशक ने थोड़ा कसे हुए ढंग से पेश किया होता जो ये और भी चुस्त हो जाती। ‘तमाशा’ कहानी की ताकत को जताने वाली फिल्म है। कहानियां हमें इस लोक में ले जाती हैं, जो रूटीन से अलग होता है। ये कल्पना और सर्जनात्कता की दुनिया होती है। यही हमें दूसरे से अलग करती हैं। और जब हमसे कहानी छीन ली जाती है या हम उससे दूर हो जाते हैं तो रोजमर्रे का जीवन हमें उस पालतू शख्स में बदल देता है जहां कोई गीत नहीं बजता, कोई संगीत अंदर से नहीं पैदा होता। ‘तमाशा’ कहानी का गीत गानेवाली फिल्म है। इसे देखने के बाद गुनगुनाने और गाने की इच्छा होती है।
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