कुछ समय पहले तक ये धारणा ही बन गयी थी कि टीवी के लोकप्रिय सितारे अगर टीवी तक ही सीमित रहें तो बेहतर है क्यूंकि बड़े पर्दे पर वो अपनी कामयाबी को दोहरा नहीं पाते और उनकी स्थिति ना घर का ना घाट का जैसी हो कर रह जाती है। अमर उपाध्याय ,श्वेता तिवारी और अमन वर्मा जैसे उदहारण ने इस बात को और पुख्ता कर दिया। लेकिन आयुष्मान खुराना ,राजीव खण्डेलवाल सुशांत सिंह राजपूत ,प्राची देसाई और रणविजय सिंह ने अपनी कामयाबी से इस प्रचलित परम्परा को तोड़ दिया। टीवी के ये कामयाब सितारे जब बड़े परदे पर उतरे तो कई स्थापित कलाकारों को भी हाशिये पर जाना पड़ा। आजकल बड़े अच्छे लगते हैं फेम राम कपूर लाइमलाइट में हैं। उनकी आनेवाली फिल्म "हमशकल्स में उन्हें न केवल पूरी तवज्जो दी गयी है बल्कि उन्हें फिल्म के प्रमोशन में काफी महत्त्व दिया जा रहा है। आगामी दिनों में वो फिल्म पटेल रैप में सनी लियोन के साथ रोमांस भी करते नज़र आएंगे। ‘बालिका वधु’ में आनंदी के कलक्टर पति के रूप में सिद्धार्थ शुक्ला की वह पहचान नहीं बन पाई जो टीवी के डांस शो ‘झलक दिखला जा’ ने उन्हें रातो रात दिला दी। लोकप्रियता भी खूब मिली और शो के एक जज करन जौहर की फिल्म ‘हम्पटी शर्मा की दुल्हनिया’ में उन्हें महत्वपूर्ण भूमिका मिल गई। ‘झलक दिखाल जा’ के विजेता रहे गुरमीत ने एक और टीवी रिएल्टी शो ‘खतरों के खिलाड़ी’ में हिस्सा लेने के बाद एलान कर दिया है कि वे अब अपनी पत्नी देवीना के साथ टीवी पर नहीं बल्कि फिल्मों में दिखेंगे। यानि ये कहा कहा जा सकता जा सकता है कि आगामी दिनों में छोटे परदे के कई सितारे इनसे प्रेरणा ले कर बड़े परदे पर अपनी किस्मत आज़माने उतरें।
भले ही आज हालात काफी बदले हुए हैं लेकिन टीवी के सितारों को बड़े पर्दे पर अपनी स्वीकृति बनाने में लम्बे संघर्ष गुजरना पड़ा है। शाहरुख़ खान ने टीवी से गुजरते हुए बॉलीवुड में अपना मुकम्मल स्थान बनाया। लेकिन बाद में जिसने भी ये राह पकड़ी उन्हें असफलता का सामना करना पड़ा। दूरदर्शन के सीरियल शान्ति से मंदिरा बेदी घर घर में पहचानी जाने लगी। लेकिन जब उहोने ‘दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ से बड़े परदे की राह पकड़ी तो टीवी से भी उखड गयी। निजी चैनलों की शुरुआत के बाद ‘तारा’ सीरियल से नवनीत निशान को जो धमाकेदार लोकप्रियता मिली, उसके बल पर फिल्मों में उन्हें प्रवेश तो मिल गया लेकिन ‘राजा हिंदुस्तानी’ व ‘तुम बिन’ की थोड़ी मजबूत भूमिका के अलावा डेढ़ दर्जन फिल्मों ने उनकी ऐसी छवि नहीं बनाई जो सहायक भूमिकाओं में ही सही, अग्रिम कतार में उन्हें खड़ा कर पाती।एकता कपूर के सीरियल ‘कसौटी जिंदगी की’ के मिस्टर बजाज और ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ में मिहिर के रूप में बनी उनकी पहचान फिर भी फिल्मों का रास्ता आसान नहीं कर पाई। ‘उड़ान’ से उन्हें वाहवाही तो मिली लेकिन गुजारा टीवी के सहारे ही चल रहा है।
एकता कपूर ने जब फिल्म निर्माण का सिलसिला शुरू किया तो अपने सीरियलों की अनिता हंसदानी व प्राची देसाई को मौका दिया। अनिता तो तीन-चार फिल्मों के बाद माडलिंग में सिमट गईं और अब फिर सीरियल की तरफ मुड़ गई हैं। प्राची देसाई को ‘बोल बच्चन’ व ‘पुलिसगिरी’ में देखने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि सीरियल ‘कसम से’ जैसी ऊंचाई उनका फिल्मी करिअर नहीं पा सकेगा।‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ के मिहिर वीरानी बने अमर उपाध्याय की लोकप्रियता का यह आलम था कि सीरियल में एक बार उन्हें मार देने के बाद दर्शकों की मांग पर उन्हें पुनर्जीवित किया गया। सीरियल बीच में ही छोड़ कर वे फिल्मी दुनिया में दाखिल होने के लिए कूद पड़े। अति उत्साह में उन्होंने गलत फिल्में चुन ली और यह भ्रम पाल लिया कि वे अपने बल पर किसी भी फिल्म को चला सकते है।
पहली फिल्म के पिटते ही उनकी गलतफहमी तो मिट गई, आगे बढ़ने के रास्ते भी बंद हो गए।अमन वर्मा सालों पहले फिल्म ‘संघर्ष’ में प्रीति जिंटा के हीरो बन कर जरूर गए लेकिन उसके बाद उनका फिल्मी ग्राफ लुढ़कता ही चला गया.यही हाल आमना शरीफ का भी हुआ।
इन दिनों सुशांत सिंह ,आयुष्मान खुराना और प्राची देसाई जैसे कलाकारों को बॉलीवुड में स्टार का दर्जा हासिल है। फ़िल्मी पंडितों के मुताबिक़ अब टीवी और फिल्मों विभाजक रेखा समाप्त हो चुकी है।छोटे परदे पर बड़े परदे की सितारों की लगातार मौजूदगी ने भी इस दूरी को मिटाने का काम किया। अब दर्शक अपने पसंदीदा सितारों को हर अवतार में स्वीकार करने को तैयार है। इस स्थिति ने टीवी के सितारों के लिए एक नयी उम्मीद जग दी है।
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