महान अभिनेता दिलीप कुमार को हिंदी सिनेमा के ' ट्रैजिडी किंग ' कहा जाता है और बॉलिवुड शहंशाह अमिताभ बच्चन को उनका ऑटोग्राफ लेने के लिए 46 बरस तक लंबा इंतजार करना पड़ा था।
बिग बी ने दिलीप साहब को पहली बार 1960 में मुंबई में देखा था। तब वह अपने
पिता के साथ मुंबई गए थे, जिन्हें किसी कवि सम्मेलन में भाग लेना था। उनके
मेजबान उन्हें मुंबई के कुछ प्रसिद्ध स्थल दिखाने ले गए। उस समय अमिताभ के
लिए मुंबई सपनों का शहर था।
अमिताभ ने मुंबई से लंदन जाते हुए
रास्ते में लिखे अपने ब्लाग में बताया है कि उस समय साउथ बांबे के एक
प्रसिद्ध रेस्त्रां में वह अपने परिवार के साथ खानपान में जुटे थे कि दिलीप
साहब अंदर आए और अपने कुछ मित्रों से बात करने लगे। उस समय तक दिलीप साहब
हिंदी सिनेमा के सुपरस्टार बन चुके थे
अमिताभ
दिलीप कुमार का ऑटग्राफ लेने के लिए इतने उतावले थे कि रेस्त्रां से निकले
और भागे भागे पास की एक स्टेशनरी दुकान से ऑटग्राफ बुक खरीद लाए।
हांफते हुए वह रेस्त्रां के अंदर घुसे और डरते हुए दिलीप साहब के पास
पहुंचे। उन्होंने विनम्रता के साथ अपनी ऑटग्राफ बुक उनकी ओर बढ़ा दी। दिलीप
साहब ने इस बच्चे को नहीं देखा। अमिताभ ने अपना अनुरोध दोहराया, लेकिन
दिलीप साहब के कानों तक उनकी बात फिर भी नहीं पहुंची। ब्लॉग में अमिताभ
लिखते हैं, दिलीप साहब ने न तो मुझे और न ही मेरी बुक की ओर देखा। कुछ ही
देर में वह वहां से चले गए।
निराश अमिताभ उनके पीछे-पीछे बढ़े,
लेकिन कुछ कदम चलकर वापस अपनी सीट पर आकर बैठ गए। उस समय परिवार के लोगों
ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा कि हो सकता है दिलीप साहब ने उन्हें नहीं
देखा हो। यह दिलीप साहब के साथ उनकी पहली मुलाकात थी।
धीरे-धीरे
समय गुजरता गया। अमिताभ हिंदी सिनेमा के नए सुपरस्टार बन गए और दिलीप साहब
का दौर ढलने लगा। इस बीच अमिताभ को दिलीप साहब के साथ एक फिल्म में काम
करने का मौका मिला।
रेस्त्रां की घटना के बाद अमिताभ ने दिल्ली
में तीन मूर्ति भवन में दिलीप साहब को देखा जहां तत्कालीन प्रधानमंत्री
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कलाकारों के सम्मान में पार्टी दी थी। उस समय
बच्चन परिवार के नेहरू परिवार से बेहद घनिष्ठ संबंध थे और बच्चन परिवार को
भी आमंत्रित किया गया था। यहां अमिताभ ने राज कपूर, देव आनंद तथा दिलीप
साहब को एक साथ पहली बार देखा था।
अमिताभ लिखते हैं कि समय बीत
गया। 2006 में वडाला के आईमैक्स में मेरी फिल्म 'ब्लैक' का प्रीमियर था।
दिलीप साहब की करीबी मित्र रानी मुखर्जी ने उन्हें प्रीमियर पर आमंत्रित
किया था। फिल्म समाप्ति के बाद मैंने पाया कि दिलीप साहब थिएटर के बाहर
मेरे आने का इंतजार कर रहे थे। जब मैं उनके पास गया, तो उन्होंने अपने हाथ
मेरी ओर बढ़ाए और मेरे दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए। मेरी आंखों में
देखते हुए वह कुछ पल बिना कुछ बोले खड़े रहे। दोनों में से किसी ने कुछ
नहीं कहा। लेकिन उसके दो दिन बाद मुझे दिलीप साहब का एक खत मिला, जिसमें
मेरे ऐक्टिंग की काफी तारीफ की हुई थी। इसी खत में नीचे दिलीप कुमार के
दस्तखत थे। इस तरह दिलीप साहब के ऑटग्राफ पाने के लिए मुझे 46 बरस लंबा
इंतजार करना पड़ा।
अमिताभ
दिलीप कुमार का ऑटग्राफ लेने के लिए इतने उतावले थे कि रेस्त्रां से निकले
और भागे भागे पास की एक स्टेशनरी दुकान से ऑटग्राफ बुक खरीद लाए।
हांफते हुए वह रेस्त्रां के अंदर घुसे और डरते हुए दिलीप साहब के पास पहुंचे। उन्होंने विनम्रता के साथ अपनी ऑटग्राफ बुक उनकी ओर बढ़ा दी। दिलीप साहब ने इस बच्चे को नहीं देखा। अमिताभ ने अपना अनुरोध दोहराया, लेकिन दिलीप साहब के कानों तक उनकी बात फिर भी नहीं पहुंची। ब्लॉग में अमिताभ लिखते हैं, दिलीप साहब ने न तो मुझे और न ही मेरी बुक की ओर देखा। कुछ ही देर में वह वहां से चले गए।
निराश अमिताभ उनके पीछे-पीछे बढ़े, लेकिन कुछ कदम चलकर वापस अपनी सीट पर आकर बैठ गए। उस समय परिवार के लोगों ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा कि हो सकता है दिलीप साहब ने उन्हें नहीं देखा हो। यह दिलीप साहब के साथ उनकी पहली मुलाकात थी।
धीरे-धीरे समय गुजरता गया। अमिताभ हिंदी सिनेमा के नए सुपरस्टार बन गए और दिलीप साहब का दौर ढलने लगा। इस बीच अमिताभ को दिलीप साहब के साथ एक फिल्म में काम करने का मौका मिला।
रेस्त्रां की घटना के बाद अमिताभ ने दिल्ली में तीन मूर्ति भवन में दिलीप साहब को देखा जहां तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कलाकारों के सम्मान में पार्टी दी थी। उस समय बच्चन परिवार के नेहरू परिवार से बेहद घनिष्ठ संबंध थे और बच्चन परिवार को भी आमंत्रित किया गया था। यहां अमिताभ ने राज कपूर, देव आनंद तथा दिलीप साहब को एक साथ पहली बार देखा था।
अमिताभ लिखते हैं कि समय बीत गया। 2006 में वडाला के आईमैक्स में मेरी फिल्म 'ब्लैक' का प्रीमियर था। दिलीप साहब की करीबी मित्र रानी मुखर्जी ने उन्हें प्रीमियर पर आमंत्रित किया था। फिल्म समाप्ति के बाद मैंने पाया कि दिलीप साहब थिएटर के बाहर मेरे आने का इंतजार कर रहे थे। जब मैं उनके पास गया, तो उन्होंने अपने हाथ मेरी ओर बढ़ाए और मेरे दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए। मेरी आंखों में देखते हुए वह कुछ पल बिना कुछ बोले खड़े रहे। दोनों में से किसी ने कुछ नहीं कहा। लेकिन उसके दो दिन बाद मुझे दिलीप साहब का एक खत मिला, जिसमें मेरे ऐक्टिंग की काफी तारीफ की हुई थी। इसी खत में नीचे दिलीप कुमार के दस्तखत थे। इस तरह दिलीप साहब के ऑटग्राफ पाने के लिए मुझे 46 बरस लंबा इंतजार करना पड़ा।
हांफते हुए वह रेस्त्रां के अंदर घुसे और डरते हुए दिलीप साहब के पास पहुंचे। उन्होंने विनम्रता के साथ अपनी ऑटग्राफ बुक उनकी ओर बढ़ा दी। दिलीप साहब ने इस बच्चे को नहीं देखा। अमिताभ ने अपना अनुरोध दोहराया, लेकिन दिलीप साहब के कानों तक उनकी बात फिर भी नहीं पहुंची। ब्लॉग में अमिताभ लिखते हैं, दिलीप साहब ने न तो मुझे और न ही मेरी बुक की ओर देखा। कुछ ही देर में वह वहां से चले गए।
निराश अमिताभ उनके पीछे-पीछे बढ़े, लेकिन कुछ कदम चलकर वापस अपनी सीट पर आकर बैठ गए। उस समय परिवार के लोगों ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा कि हो सकता है दिलीप साहब ने उन्हें नहीं देखा हो। यह दिलीप साहब के साथ उनकी पहली मुलाकात थी।
धीरे-धीरे समय गुजरता गया। अमिताभ हिंदी सिनेमा के नए सुपरस्टार बन गए और दिलीप साहब का दौर ढलने लगा। इस बीच अमिताभ को दिलीप साहब के साथ एक फिल्म में काम करने का मौका मिला।
रेस्त्रां की घटना के बाद अमिताभ ने दिल्ली में तीन मूर्ति भवन में दिलीप साहब को देखा जहां तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कलाकारों के सम्मान में पार्टी दी थी। उस समय बच्चन परिवार के नेहरू परिवार से बेहद घनिष्ठ संबंध थे और बच्चन परिवार को भी आमंत्रित किया गया था। यहां अमिताभ ने राज कपूर, देव आनंद तथा दिलीप साहब को एक साथ पहली बार देखा था।
अमिताभ लिखते हैं कि समय बीत गया। 2006 में वडाला के आईमैक्स में मेरी फिल्म 'ब्लैक' का प्रीमियर था। दिलीप साहब की करीबी मित्र रानी मुखर्जी ने उन्हें प्रीमियर पर आमंत्रित किया था। फिल्म समाप्ति के बाद मैंने पाया कि दिलीप साहब थिएटर के बाहर मेरे आने का इंतजार कर रहे थे। जब मैं उनके पास गया, तो उन्होंने अपने हाथ मेरी ओर बढ़ाए और मेरे दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए। मेरी आंखों में देखते हुए वह कुछ पल बिना कुछ बोले खड़े रहे। दोनों में से किसी ने कुछ नहीं कहा। लेकिन उसके दो दिन बाद मुझे दिलीप साहब का एक खत मिला, जिसमें मेरे ऐक्टिंग की काफी तारीफ की हुई थी। इसी खत में नीचे दिलीप कुमार के दस्तखत थे। इस तरह दिलीप साहब के ऑटग्राफ पाने के लिए मुझे 46 बरस लंबा इंतजार करना पड़ा।
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